Tuesday, December 14, 2010

Chamapa Ka Pead

                                            धर्म संस्कृति
                       लगभग एक शताब्दी पुराने चम्पा के पेड के प्रति ग्रामिणो की बेमिसाल आस्था
                                                                            -रामकिशोर पंवार
बैतूल।  जहाँ एक ओर लोग सड़को और मकानो तथा दुकानो के लिए हरे भरे पेड़ो को बेरहमी से काटते चले आ रहे है वहीं पर बैतूल जिला मुख्यालय से महज़ मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रोंढ़ा में एक चम्पा का पेड लोगो की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। ग्राम पंचायत रोंढा में सेवानिवृत वनपाल श्री दयराम पंवार के पैतृक मकान से लगे इस पेड की छांव के नीचे विराजमान गांव की चमत्कारी खेडापति माता मैया के चबतुरे पर लगे इस पेड की उम्र लगभग सौ साल से ऊपर बताई जाती है। इसी ग्राम रोंढा की 74 वर्षिय श्रीमति गंगा बाई देवासे बताती है कि वज जब ससुराल आई थी तब भी यह चम्पा का पेड इसी स्थान पर था। श्रीमति गंगा बाई के अनुसार लगभग सोलह साल की उम्र में उसकी शादी हुई थी। उस समय से इस पेड को इसी स्थान पर देखते चली आ रही है। नाती - पोतो की हो चुकी श्रीमति गंगा बाई के घर पर उस चम्पा के पेड का डालिया आज भी फूलो की बरसात करते चले आ रहे ही। इसी ग्राम रोंढा में जन्मी श्रीमति गंगा बाई का जन्म गांव के ही दुसरे मोहल्ले में हुआ था। वह बताती है कि उसके घर के पास स्थित इस चम्पा के पेड के नीचे से कभी हाथी आया - जाया करते थे। लेकिन चम्पा के पेड की एक डाली इस तरह झुक गई कि आदमी अगर उस पेड के नीचे से निकलते समय झुक कर ना चले तो उसका सिर टकरा जाता है। गांव की सर्वाधिक लोकप्रिय बिजासन माई - माता मैया कहलाने वाली इस खेडापति माता माँ के चबुतरे पर लगे इस पेड को कुछ लोगो के द्धारा काटने का भी प्रयास किया लेकिन पूरे दिन भर तीन लोग मिल कर भी पेड की एक डाली काट नहीं पाये। चम्पा के पेड को काटने वालो में स्वंय के बेटे के भी याामिल होने की बात कहने वाली श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार शाम को पेड काटने वाले इस तरह बीमार हुये कि छै माह तक उनका इलाज चलता रहा। जब दवा -दारू से लोग ठीक नहीं हुये तब दुआ ही काम आती है अंत में गांव के उन तीनो युवको ने माता माँ से एवं उस चम्पा के पेड के पास माफी मांगी और पूजा - अर्चना की तब जाकर वे ठीक हो सके। गांव के एक ही परिवार के दो मुखिया इसी पेड की डाली को काटने के चक्कर में अकाल मौत के शिकार हो चुके है। ग्रामिणो की बात माने तो पता चलता है कि इस तरह की घटना के बाद से उस गली से चौपहिया वाहनो एवं बैलगाडी का निकलना तक बंद हो गया। गांव के लोग उस चम्पा के पेड के लिए गांव की गली को सड़क तक बनाने के लिए सहमत नहीं हो पा रहे है। गांव की उस गली को पक्की सीमेंट रोड बनाये जाने का प्रस्ताव पास होकर पडा है लेकिन सभी के सामने समस्या यह है कि उस पेड को आँच न आये और सड़क बन जाये। ग्राम पंचायत रोंढा के उस वार्ड के पंच भगवान दास देवासे के अनुसार ग्राम के लोगो की आस्था के केन्द्र बने इस चम्पा के पेड से लगे माता मंदिर का चबुतरा भी बनाया जाना है जिसके लिए गांव के ही मूल निवासी सेवानिवृत वनपाल श्री दयाराम पंवार के पुत्रो द्धारा गांव के अपने पैतृक मकान की भूमि माता माँ के मंदिर व चबुतरे के लिए दान में दी जा चुकी है। श्री देवासे के अनुसार लोगो की आस्था का एवं विश्वास का केन्द्र बने चम्पा के पेड के प्रति पूरे गांव का प्रेम ही उसकी सुरक्षा करेगा। अब गांव का कोई भी व्यक्ति उस पेड को काटने या उसकी डाली को छाटने की बात नहीं करता। बैतूल जिले के छोटे से सर्वोदयी गांव रहे रोंढा में संत टुकडो जी महराज एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के कभी पांव पडे थे। बैतूल जिले के इस ग्राम पंचायत रोंढा के उस सौ साल से अधिक उम्र के चम्पा के पेड को देखने के लिए लोग दूर - दूर से आते रहते है। वैसे भी जब - जब चमेली के फूलो की बाते चलेगी तो चम्पा के फूलो का जिक्र होना स्वभाविक है क्योकि चम्पा के पेड के तीन गुण विशेष है पहला रंग - दुसरा रूप - तीसरा यह कि इस फूल की सुगंध नहीं आती है। इस फूल पर कभी भवंरा नही मडराता। गांव के लोगो के अनुसार गांव में चम्पा का एक मात्र पेड है जो कि अपनी उम्र के सौ साल पूरे कर चुका है। पेडो से इंसान का रिश्ता नकारा नहीं जा सकता। आज शायद यही कारण है कि लोगो की आस्था एवं विश्वास  तथा श्रद्धा के इस त्रिवेणी संगम कहे जाने वाले पेड में कड़वी नीम के पेड की एक नई फसल उगने के बाद पेड बनती जा रही है इसके बाद भी कड़वी नीम की कड़वाहट इस चम्पा के पेड के फूलों में न आने वाली सुगंध में पर कोई असर कर पाई है। बैतूल जिले के ग्राम रोंढा के इस चम्पा के पेड़ के लिए अपना पैतृक खण्डहर हो चुके मकान के ध्वस्त हो जाने के बाद भी उस स्थान पर कोई मकान आदि का निमार्ण न करने वाले सेवाविनृत वनपाल श्री दयाराम पवांर ने अपनी तीस साल की सेवा में अनेको पौधो को रोपित किया। उन्होने कई नर्सरी से लेेकर वन विभाग की वन रोपिणी के पौधो को वितरीत करते समय ही इस बात को मन में ठान ली थी कि अब जरूरत है कि वनो की नहीं पेड़ - पौधो की रक्षा एवं सुरक्षा के प्रति आम इंसान को जोड़े। इसके लिए सबसे बड़ा माध्यम है कि लोगो को प्रेरित करे कि वह अपने घर के आंगन में कम से कम एक पौधा का रोपित कर उसे पाल पोश कर पेड़ बनाये ताकि वह आसपास का वातावरण शुद्ध रख सके। घने जंगलो में तीस साल की नौकरी के बाद आज भी उनका वनो से और पेडो से प्रेम बरकरार है। श्री पंवार के पुत्रो ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एवं माता रानी के चबुतरे के लिए अपनी स्वेच्छा भूमि दान करके  लोगो को एक संदेश देना चाहा है कि लोग इंच भर की जमीन के लिए एक दुसरे की जान के दुश्मन बने हुये है लेकिन उक्त जमीन को दान में देने से उनका गांव के प्रति प्यार और स्नेह और अधिक हो जायेगा। किसी ने कहाँ भी है कि जननी से बड़ी होती है जन्मभूमि ...... हो सकता है कि शायद अपने बच्चो के एवं अपने जन्म से जुड़े अपने गांव से अपना रिश्ता बरकरार रखने के लिए जो 30 साल तक वन विभाग में वनो की सुरक्षा का दायित्व निभाने के बाद उम्र के उस ठहराव पर श्री पंवार का यह अभिनव प्रयास उन लोगो के लिए एक उदाहरण बनेगा जो कि अपने घरो - दुकानो - मकानो - सड़को और गलियों के नाम पर हरे - भरे पेड़ो को बेरहमी से काट डालते है।
संलग्र छायाचित्र 

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